पाठक भक्ति

भगवान को चंदन, पुष्प अर्पण करना मात्र इतने में कोई भक्ति पूर्ण नहीं होती, यह तो भक्ति की एक प्रक्रिया मात्र है। भक्ति तो तब ही होती है जब सब में भक्तिभाव जागता है।

ईश्वर सब में है। मैं जो कुछ भी करता हूं उस सबको ईश्वर देखते हैं, जो ऐसा अनुभव करता है उसको कभी पाप नहीं लगता। उसका प्रत्येक व्यवहार उचित है और यही तो भक्ति है। जो मनुष्य निष्काम भाव से अपने कार्य को प्रभु का दिया हुआ कार्य है यह समझ कर पूर्ण करता है वह भी एक प्रकार की भक्ति ही है ।।